Brought Modesty And Sweetness To Words
हमारी वाणी तो हमारे सद्व्यवहार की सबसे बड़ी कसौटी है। मां के पेट से निकला बच्चा,कमान से निकला तीर और मुंह से निकले शब्द कभी वापस अंदर नहीं जाते। शब्द मुफ्त में मिलते दिखते हैं, पर जैसा हम उनका उपयोग करेंगे हमें उनकी कीमत वैसे ही चुकानी पड़ेगी। शब्दों को हमें इतना मधुर रखना चाहिए कि जब वे वापस लौटे तो वे खुद को कड़वे ना लगे। कितनी बड़ी बात है कि मीठा बोलने वाले की तो मिर्ची भी बिक जाती है, वही कड़वा बोलने वाले की मिश्री भी कोई लेने वाला नहीं होता। रावण को बोलना नहीं आता था तभी तो सगे भाई को खो दिया था, राम को बोलना आता था, सो दुश्मन के भाई को भी अपना बना लिया।
वाणी में सचमुच अद्भुत ताकत होती है। हम हमेशा प्रेम से बोले, मिठास से बोले। शब्दों में भी जान होती है, यह गम भी देती है और मुस्कान भी, हमारे व्यक्तित्व को पहचान भी।
कॏआ भी काला होता है और कोयल भी। दोनों में कोई भेद नजर नहीं आता,पर बसंत ऋतु आने पर यह साफ नजर आ जाता है कि कौन कॏआ है और कौन कोयल। क्या आप समझ गए कि कौवा और कोयल में किस चीज का फर्क है ? आवाज का। जो दुनिया में कर्कश आवाज करें वह कॏआ और जो मीठा बोले वह कोयल। हमें तय करना है कि हम अपने आप को क्या बनाना चाहते हैं- कॏआ या कोयल.......?
दरिया ने झरने से पूछा, तुझे समंदर नहीं बनना क्या ? झरने ने विनम्रता से कहा- बड़ा बनकर खारा बनने की बजाय छोटा रहकर मीठा ही रहूं । महत्वपूर्ण छोटा बनना है, ना ही बड़ा। महत्वपूर्ण है मिठास भरा होना।
हमें अपनी जिंदगी में सफल होने के लिए तीन फैक्ट्री खोल चाहिए---
1.दिमाग में आइस फैक्ट्री,
2.दिल में लव फैक्ट्री,
3.जुबान पर शुगर फैक्ट्री,
फिर लाइफ होगी सेटिस्फेक्ट्री ।
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Nice thinking
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